हिंदी कहानियां - भाग 190
आदतों पर विजय
आदतों पर विजय राधिका और कृतिका जुड़वां बहने थीं। उनके पिता एक गांव के जागीरदार थे। इस वजह से पूरे गांव में उनका दबदबा था। जुड़वां होने के बावजूद उनके स्वभाव एकदम विपरीत थे। लोग कहते थे कि अगर वे भाई होते, तो इन्हें राम-लक्ष्मण की जोड़ी कहने के बजाय राम-रावण की जोड़ी कहा जाता। राधिका एक तरफ जहां शांत, पढ़ने में रुचि रखने वाली, दयालु और बुद्धिमान थी, वहीं कृतिका किताबों से दूर भागती थी। उसे एकदम गुस्सा आ जाता था और हमेशा वह सबसे लड़ने को तैयार रहती थी। राधिका के साथ जब उसे भी स्कूल भेजा गया, तो वह पहले ही दिन लड़-झगड़कर वहां से भाग आई। बहुत दिनों तक ऐसा ही चला, तो एक दिन स्कूल के प्रिंसिपल ने बहुत डरते-डरते जागीरदार से इस बात की शिकायत की। जागीरदार स्कूल में चंदा दिया करते थे। उसकी वजह से स्कूल का माहौल खराब हो रहा था, पर फिर भी उसे स्कूल में रखने का जोखिम वह उठा नहीं सकते। हारकर उसे स्कूल से हटा दिया गया और घर में ही मास्टर रख दिया गया। पर कोई भी मास्टर बहुत दिनों तक टिक नहीं पाया और इस तरह कृतिका को पढ़ने से छुट्टी मिल गई। राधिका पढ़ने में इतनी तेज निकली कि जब वह पांचवीं कक्षा में पहुंची, तो उसे अच्छे स्कूल में बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए शहर के एक अंग्रेजी मीडियम स्कूल में भर्ती करवा दिया और वहीं छात्रावास में रहने का प्रबंध भी कर दिया। राधिका अपनी आदतों व स्वभाव के कारण सबकी आंखों का तारा थी। यह बात कृतिका को खटकती थी, इसलिए वह उसे तंग करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती थी। कभी उसकी किताबों पर स्याही गिरा देती या उसके किए काम को गंदा कर देती। इसके लिए उसे डांट पड़ती थी, पर इससे वह और जिद्दी और झगड़ालू हो गई थी। उसे यही लगता कि सब केवल राधिका से प्यार करते हैं और इसलिए वह उससे बहुत चिढ़ती थी। एक कारण यह भी था राधिका को शहर पढ़ने भेजने का। जागीरदार चाहते थे कि कृतिका के व्यवहार का असर उस पर न पड़े वरना उसकी पढ़ाई खराब हो सकती थी। ऐसा नहीं था कि जागीरदार या उनकी पत्नी या अन्य लोग कृतिका से प्यार नहीं करते थे, पर उसकी आदतों से सबको बहुत ठेस लगती थी। उसे समझाने की जितनी कोशिश की जाती, वह उतनी ही बदतमीजी करती। वह यही कहती कि आप सब तो राधिका को प्यार करते हैं, मेरी किसी को परवाह नहीं है, तो मैं क्यों किसी की परवाह करूं, गांव के बच्चे भी उससे कतराने लगे थे। पिछले साल जब गांव में रामलीला हुई थी, तो बच्चों ने रावण कहकर उसका मजाक उड़ाया था। तब गुस्से में उसने एक बच्चे के माथे पर इतनी जोर से पत्थर मारा था कि वह घायल हो गया। जागीरदार की बेटी होने के कारण लोग कुछ बोल न पाए। राधिका भी कृतिका को बहुत समझाया करती थी। उसकी किसी बात का वह बुरा नहीं मानती थी। वह चाहती थी कि उसकी बहन खूब पढ़े। इसी तरह उसका ध्यान फालतू बातों से हट सकेगा। पर जब एक बार वह उसे समझा रही थी, तो कृतिका ने गुस्से में उसकी कलाई पर दांत गड़ा दिए। उस दिन उसे कमरे में बंद करके रखा गया और मां ने भी गुस्से से उसे रावण का अवतार कह दिया था। रावण सुनते-सुनते उसे लगने लगा कि वह सचमुच बहुत बुरी है, बिल्कुल रावण की तरह। वह अपनी अज्ञानता के कारण यह नहीं जानती थी कि रावण बुरा नहीं था, बल्कि अपनी करतूतों और बुरे कर्मों की वजह से बुरा कहलाता था। दशहरा आने ही वाला था। राधिका छुट्टियों में गांव आई थी। आजकल कृतिका पर एक नई धुन सवार हो गई थी। उसने किस्म-किस्म के तीर-कमान खरीदने की जिद की। जागीरदार ने उसकी यह इच्छा पूरी भी कर दी। वह गली-गली तीर-कमान लेकर निकलने लगी और कहती, “मैं रावण हूं, मुझसे बचकर रहना। अब जरा संभालो इस तीर को...” और वह तीर चला देती। राधिका ने यह देखा, तो वह हैरान रह गई। अपनी बहन को सही राह पर लाने का उसने निश्चय किया। वैसे भी शहर में पढ़ने से उसके अंदर और ज्यादा आत्मविश्वास आ गया था और नई-नई बातों की जानकारी भी हो गई थी। उसके स्कूल की लाइब्रेरी में ढेरों किताबें थीं। दशहरे से एक दिन पहले, शाम को बड़े प्यार से उसने कृतिका को अपने पास बिठाया और उसे शहर से लाई चॉकलेट देते हुए बोली, “आज तुम कितनी प्यारी लग रही हो। सफेद रंग तुम पर कितना खिलता है।” “लेकिन सब लोग मुझे रावण कहते हैं। मैं सचमुच बहुत बुरी हूं।” वह रोंआसी हो उठी थी। “सब झूठ कहते हैं और रावण कोई खराब थोड़े ही था? शायद तुम्हें पता नहीं। वह बहुत बुद्धिमान और तेजस्वी था। सारे शास्त्रों का ज्ञाता था, उसने तप करके ब्रह्मा को प्रसन्न कर ढेर सारी शक्तियां प्राप्त की थीं। यहां तक कि उसकी शक्ति से देवता तक घबराते थे। उसकी सुंदरता और उदारता का कोई मुकाबला नहीं था। बस अपनी आदतों की वजह से वह बुरा कहलाया और रामजी को उनका वध करना पड़ा।” “सच में रावण इतना अच्छा था?” कृतिका ने हैरानी से पूछा, “तो फिर मैं बुरी कैसे हुई? मुझे सब रावण क्यों कहते हैं?” “तुम बुरी नहीं हो, पर लोगों को तंग करना बुरी बात है। पढ़ाई न करना बुरा है, झगड़ा करना बुरा है, बड़ों का आदर न करना बुरा है, इसलिए सब तुम्हें रावण कहते हैं। अगर तुम स्कूल जाओगी और लड़ाई नहीं करोगी, सबसे आदर से पेश आओगी, तो कोई तुम्हें रावण नहीं कहेगा। सब तुम्हें प्यार करेंगे।” कृतिका चुपचाप सब सुन रही थी। दशहरे वाले दिन वह बिना किसी के कहे तैयार हो गई। खाना खाने में भी जिद नहीं की। यहां तक कि तीर-कमान लेकर बाहर भी नहीं निकली। शाम को जब सब लोग रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले जलते देख रहे थे, तो अचानक कृतिका बोली, “पिताजी, मैं अब किसी से नहीं लड़ूंगी। मैं भी स्कूल जाऊंगी। आप मुझे स्कूल भेजेंगे न?” उसकी बात सुन जागीरदार साहब और उसकी मां की आंखों में आंसू आ गए। राधिका ने गर्व से उसे देखा। जागीरदार साहब ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा। राधिका उसे देख मुसकराई, तो कृतिका उससे लिपट गई। राधिका समझ गई थी कि आज कृतिका के अंदर छिपे रावण की बुराइयों पर उसकी अच्छाइयों ने विजय पा ली थी।’